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Bhagavad Gita Part 138: आठवें अध्याय की शुरुआत में अर्जुन ने श्रीकृष्ण से पूछे ये 7 बड़े सवाल! पढ़ें

जीवांजलि धार्मिक डेस्क Published by: निधि Updated Thu, 23 May 2024 05:50 PM IST
सार

Bhagavad Gita Part 138: भगवद्गीता के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, श्री कृष्ण अर्जुन को समझाते है कि एक ऐसा व्यक्ति जिसकी बुद्धि शुद्ध हो गई है।

Bhagavad Gita Part 138
Bhagavad Gita Part 138- फोटो : JEEVANJALI

विस्तार

Bhagavad Gita Part 138: भगवद्गीता के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, श्री कृष्ण अर्जुन को समझाते है कि एक ऐसा व्यक्ति जिसकी बुद्धि शुद्ध हो गई है वह अपनी मृत्यु के समय भी अपनी आध्यात्मिक चेतना को जाग्रत रखने में कामयाब हो सकता है और इसी के साथ भगवद्गीता के सप्तम अध्याय का समापन हो जाता है। 
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इसके बाद अष्टम अध्याय की शुरुआत होती है। यहां अर्जुन श्री कृष्ण से कुछ प्रश्न करते है। ये सब वही शब्द है जिनका प्रयोग श्री कृष्ण ने सप्तम अध्याय में किया हुआ है। 

किं तद्ब्रह्म किमध्यात्मं किं कर्म पुरुषोत्तम। अधिभूतं च किं प्रोक्तमधिदैवं किमुच्यते। ( अध्याय 8 श्लोक 1 )

किम्-क्या; तत्-वह; ब्रह्म-ब्रह्म; किम्-क्या; अध्यात्मम्-जीवात्मा; किम्-क्या; कर्म-कर्म के नियम; पुरूष-उत्तम-परम दिव्य स्वरूप, श्रीकृष्ण; अधिभूतम्– भौतिक अभिव्यक्तियाँ; च-और; किम्-क्याः प्रोक्तम्-कहलाता है; अधिदैवम् स्वर्ग के देवता; किम्-क्या; उच्यते-कहलाता है।
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अर्थ - अर्जुन ने कहा, हे भगवान ! 'ब्रह्म' क्या है? 'अध्यात्म' क्या है और कर्म क्या है? 'अधिभूत' को क्या कहते हैं और 'अधिदैव' किसे कहते हैं? 

व्याख्या - भगवान् श्री कृष्ण ने अध्याय 7 में इन सब शब्दों का प्रयोग किया है इसलिए अर्जुन के मन में इन सबको समझने की जिज्ञासा पैदा हो गई है। वो कृष्ण से इन सबके बारे में समझाना चाह रहे है। ब्रह्म, अधिभूत, अध्यात्म, अधिदैव, अधियज्ञ जैसे शब्दों को अब अर्जुन समझना चाहता है। 

अधियज्ञः कथं कोऽत्र देहेऽस्मिन्मधुसूदन। प्रयाणकाले च कथं ज्ञेयोऽसि नियतात्मभिः ( अध्याय 8 श्लोक 2 )

अधियज्ञः-यज्ञ के कर्मकाण्डों के स्वामी; कथम् किस प्रकार से; क:-कौन; अत्र-यहाँ; देहे-शरीर में; अस्मिन्-इस; मधुसूदन-मधु नाम के असुर का दमन करने वाले, श्रीकृष्णः प्रयाण-काले-मृत्यु के समय; च-तथा; कथम्-कैसे; ज्ञेयः-जानना; असि-सकनाः-नियत-जानना; आत्मभिः-दृढ़ मन वालो द्वारा।

अर्थ - हे कृष्ण ! दृढ़ मन से आपकी भक्ति में लीन रहने वाले मृत्यु के समय आपको कैसे जान पाते हैं? यहाँ अधियज्ञ कौन है और वह इस देह में कैसे है? 

व्याख्या - सप्तम अध्याय के उपसंहार में श्री कृष्ण ने अर्जुन को यह समझाया था कि कैसे उनकी भक्ति में लीन रहने वाले मनुष्य की चेतना में वो विराजमान रहते है। अर्जुन अब कृष्ण से उस रहस्य को भी समझना चाह रहा है। अर्जुन को यह लगता है कि एक साधारण मनुष्य उस स्तर की भक्ति को प्राप्त कैसे कर सकता है? इसलिए वो अपने मित्र और गुरु कृष्ण से इस राज को समझना चाह रहा है।
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