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Patak Kaal Sarp Dosh: कब और कैसे बनता है पालक कालसर्प दोष जानिए

जीवांजलि धार्मिक डेस्क Published by: कोमल Updated Mon, 27 May 2024 05:06 AM IST
सार

  Patak Kaal Sarp Dosh: ज्योतिष शास्त्र में राहु और केतु को मायावी ग्रह माना जाता है। दोनों ग्रह वक्री चाल से चल रहे हैं। इस समय राहु मीन राशि में और केतु कन्या राशि में मौजूद हैं। राहु और केतु एक राशि में 18 महीने तक गोचर करते हैं।

पातक काल सर्प दोष
पातक काल सर्प दोष- फोटो : jeevanjali

विस्तार

 Patak Kaal Sarp Dosh: ज्योतिष शास्त्र में राहु और केतु को मायावी ग्रह माना जाता है। दोनों ग्रह वक्री चाल से चल रहे हैं। इस समय राहु मीन राशि में और केतु कन्या राशि में मौजूद हैं। राहु और केतु एक राशि में 18 महीने तक गोचर करते हैं। इसके बाद वे वक्री गति करते हुए यानी विपरीत दिशा में चलते हुए दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं। ज्योतिषियों के अनुसार, राहु 18 मई 2025 को कुंभ राशि में गोचर करेगा। वहीं, केतु वक्री होकर सिंह राशि में गोचर करेगा। राहु और केतु अन्य शुभ और अशुभ ग्रहों के साथ मिलकर कुंडली में कई दोष उत्पन्न करते हैं। इन्हीं दोषों में से एक है काल सर्प योग, जो अत्यंत कष्टदायक होता है। कालसर्प दोष कई प्रकार का होता है। आइये जानते हैं पातक कालसर्प दोष के बारे में सबकुछ-
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पातक कालसर्प दोष कैसे बनता है?

ज्योतिषियों के अनुसार कालसर्प दोष तब बनता है जब सभी शुभ और अशुभ ग्रह राहु और केतु के बीच (12 घरों के बीच) रहते हैं। इसी तरह जब कुंडली के चौथे घर में केतु और दसवें घर में राहु मौजूद हो और दोनों ग्रहों के बीच सभी शुभ और अशुभ ग्रह मौजूद हों तो पातक कालसर्प दोष बनता है।


पातक कालसर्प दोष का प्रभाव

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पातक कालसर्प दोष से पीड़ित व्यक्ति को जीवन में कई प्रकार की परेशानियों से गुजरना पड़ता है। व्यक्ति की अपने परिवार के सदस्यों से नहीं बनती है। नियमित अंतराल पर बहस होती रहती है. व्यक्ति हमेशा बेचैन रहता है. मानसिक तनाव की समस्या रहती है. सपने में सांप दिखाई देने लगते हैं. इसके अलावा आर्थिक और शारीरिक परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है।

उपाय 

ज्योतिषी कालसर्प दोष से पीड़ित व्यक्ति को राहत पाने की सलाह देते हैं। इससे काल सर्प दोष का प्रभाव समाप्त हो जाता है। इसके लिए त्र्यंबकेश्वर और महाकालेश्वर मंदिर सर्वोत्तम माने जाते हैं। इसके अलावा सामान्य उपाय करके भी काल सर्प दोष के प्रभाव को कम किया जा सकता है। रोजाना स्नान-ध्यान के बाद गंगा जल में काले तिल मिलाकर भगवान शिव का अभिषेक करें। प्रतिदिन हनुमान चालीसा, सुंदरकांड का पाठ करें। प्रतिदिन पशु-पक्षियों को दाना खिलाएं।
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